साड़ी अधिकतर भारतीय महिलाओ की मुख्य पोशाख है | वैसे तो साड़ी के कई प्रकार है , परन्तु यदि हम इन साड़ियों को दिए गए नामो की बात करते हैं तो , किसी साड़ी को उसकी हस्तकला के आधार पर नाम दिया गया है, जैसे कलमकारी साड़ी , तो किसी को उसकी बनावट के आधार पर जैसे पट्टचित्र साड़ी और कई साड़ियों को जिस प्रदेश में बनती है , उस प्रदेश या शहर के नाम पर भी साड़ियों के नाम रखे गए है, जैसे भागलपुरी साड़ी , गडवाल साड़ी आदि इसी के अंतर्गत आज हम आपको धनियाखाली साड़ी - Dhaniakhali Saree की जानकारी देने जा रहे हैं |
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Dhaniakhali Saree का नाम पश्चिम बंगाल के हुगली जिल्हे में धनियाखाली गांव के नाम पर रखा गया है | जो की कलकत्ता से ५० किलोमीटर की दुरी पर स्थित है | पहले धनियाखाली अपनी उत्कृष्ट सूती धोती के लिए प्रसिद्ध थी , लेकिन जैसे -जैसे धोती की मांग घटती गई बुनकरो ने वैकल्पिक आय के स्त्रोत के रूप में धनियाखाली साड़ी की बुनाई को अपनाया |
Dhaniakhali Saree को अक्सर साड़ियों की " सुनहरी फसल " भी कहा जाता हैं | साड़ी की बुनाई पारम्परिक स्लेटी रंग, सफ़ेद रंग, या काले रंग में होती है | परन्तु बदलते वक्त के साथ बुनकरों ने अन्य चमकीले पिले , गुलाबी लाल और कई अन्य रंगो में साड़ी की बुनाई शुरू कर दी | इस साड़ी की एक खास बात ये है की इसे साबूदाने के बीज , गेहू , फुला हुआ धान और बहुत कुछ के साथ बहुत अधिक स्टार्च किया जाता है | इस प्रकार बुनाई की आवश्यक बनावट प्राप्त करने में मदत मिलती है |
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Dhaniakhali Saree को बुनने में कम से कम दो दिन लगते है | हालांकि एक आकर्षक साड़ी बुनने में चार से पांच दिन भी लग सकते है | इस साड़ी की इन्ही सभी खुबीओ के कारण धनियाखाली साड़ी भारत का जी आई टैग धारण करती है |