भारतीय महिलाओ में साड़ी और ब्लाउज का एक विशेष स्थान है | यहाँ तक की साड़ी बोहतसी महिलाओ की पसंदीदा पोशाख है | जिस तरह ब्लाउज या उसके डिज़ाइन के विभिन्न प्रकार है , उसी तरह साड़िया भी विभिन्न प्रकार की होती है | जिसे अलग -अलग मौको पर महिलाओ द्वारा पहनी जाती है | इन विभिन्न प्रकार की साडियो का भारत के विभिन्न प्रदेशो की संस्कृति से विशेष जुड़ाव है | इसी के अन्तर्गत इस ब्लॉग में जिस साड़ी की जानकारी देने का प्रयास कर रहे है वह महाराष्ट्र की फेमस नऊवारी साडी (Nauvari Saree ) |
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मुख्यतः महाराष्ट्र की मराठी महिलाओं द्वारा पहनी जाने वाली यह साड़ी नौगज की होती है ,इसलिए इसे नऊवारी साड़ी कहते है | नऊवारी साड़ी को अन्य कई नामो से भी जाना जाता है जैसे काष्टा साड़ी ( Kashta Saree ) , लुगड़े (Lugde ) आदि |
काष्टा या नऊवारी पहनने का तरीका धोती पहनने के तरीके से मिलता जुलता है | काष्ट शब्द का अर्थ होता है पीछे की तरफ बंधी हुई साड़ी वैसे इस साड़ी को इस प्रकार पहना जाता है की इसका केंद्र कमर के पीछे बड़े सफाई से रखा जाता है , और सिरों को सामने की ओर सुरक्षित बांधा जाता है , और फिर दोनों सिरों को पैरो की चारो तरफ लपेटा जाता है | फिर सजावटी सिरों को फिर कंधो या शरीर के ऊपरी भाग पर लपेटा जाता है |
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यह साड़ी बिना पेटीकोट के पहनी जाती है | बोहतसी महिलाये यह साड़ी पहनना पसंद करती है | परन्तु वे इस साड़ी के पहनने के तरीके को नहीं जानती इसी को ध्यान में रखकर मार्केट में आजकल रेडीमेड या प्री -स्टिच नऊवारी साड़ी मिलती है | जिसे सलवार की तरह आसानी से पहना जा सकता है | पहले यह साड़ी कपास से बनी होती थी परन्तु अब यह रेशम सहित अन्य कपड़ो में भी आसानी से मिल जाती है | इस साड़ी को मुख्यतः हरा , लाल , पीला या नीला इन रंगो में अधिक पसंद किया जाता है | यह साड़ी महाराष्ट्र की कई बुजुर्ग महिलाए नियमित रूप से पहनती है , तथा ज्यादातर नृत्य ( लावणी ) या महाराष्ट्रियन लोक नृत्य में यह साड़ी पहनी जाती है |
महिलाओ द्वारा धार्मिक तथा सांस्कृतिक कार्यक्रमों में भी इसका उपयोग किया जाता है | महाराष्ट्र में शादी में दुल्हन इस साड़ी का उपयोग अवश्य करती है , मुख्यतः ब्राम्हण समाज की महिलाये इस साड़ी को शादियों के साथ -साथ विभिन्न त्यौहारों में भी पहनना पसंद करती हैं |