भारतीय साड़ी कपडे का बिना सिला हुआ कपडे का एक लम्बा टुकड़ा है , जो की 6 से 9 गज का होता है | साड़ी को को पहनने लिए साड़ी को शरीर के चारो और लपेटा जाता है | जिसका एक सिरा कमर पर बांधा जाता है तथा एक हिस्सा पल्लू के रूप में करीने से कंधे पर लिपटा होता है | वैसे साड़ियां विभिन्न प्रकार की होती है ,उन साड़ियों में कुछ साड़ियों को लपेटने की शैली अलग-अलग हो सकती है |
साड़ी यह भारतीय महिलाओं का मुख्य परिधान है | जैसे की हम बता चुके है साड़ियों के विभिन्न प्रकार होते है जैसे बनारसी साड़ी , पटोला साड़ी , चंदेरी साड़ी , पैठनी साड़ी आदि , साड़ी यह केवल भारतीय महिलाओ का पसंदीदा पहनावा नहीं रहा अब विदेशी महिलाये भी साड़ी यह परिधान पहनना पसंद करती है | इसी के अंतर्गत आज हम आपको कांथा साड़ी ( Kantha Saree ) की जानकारी दे रहे है |
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कांथा शब्द को संस्कृत शब्द " कोन्था " से लिया गया है | जिसका अर्थ है " लता "असल में कांथा भारत की सबसे पुरानी कढ़ाई करने की कला को कहते है | कहा जाता है की इसकी उत्पत्ति का पता पूर्व -वैदिक काल 1500 ई. पुर्व लगाया गया |
कांथा कढ़ाई काम पश्चिम बंगाल और बिहार में अधिक लोकप्रिय है | वैसे कांथा की उत्पत्ति उस तरीके से हुई जिसमे बंगाल की महिलाये रंग -बिरंगे धागे से पुराने कपडे पर डिज़ाइन बनाकर उसे ठीक करती थी | कढ़ाई का ये काम अक्सर ग्रामीण महिलाओ द्वारा किया जाता है |
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कांथा कढ़ाई को साड़ियों पर व्यापक रूप से किया जाता हैं इस तरह की कढ़ाई जिस साड़ी पर की जाती है उसे कांथा साड़ी कहते है | बेहतरीन कढ़ाई के कारण इस साड़ी की मार्केट में हमेशा डिमांड बनी रहती है | वैसे आजकल अन्य परिधानों या कपड़ो जैसे दुपट्टा , महिलाओ के लिए शर्ट , बिस्तर और अन्य फर्निशिंग कपड़ो पर भी इसका उपयोग किया जाता है | जिसके लिए रेशम या कपास का प्रयोग किया जाता है |
कांथा कढ़ाई में मुख्य रूप से जानवरो , पक्षियों , फूलो , साधारण ज्यामितीय आकृतियों और रोजमर्रा की जिंदगी के दृश्यों जैसे रूपांकनों के रूप में साडियो पर कढ़ाई की जाती है |