हमारा भारत देश विविधता से भरा हुआ है , उसी तरह भारत देश अलग -अलग प्रदेशो में भी बटा हुआ है ,यहाँ विभिन्न जाती और धर्म के लोग मिलजुलकर रहते है | इन अलग -अलग प्रदेशो में रहने वाले लोगो के रहन सहन के साथ- साथ कपड़ो में भी भिन्नता है | उसी कारण इन विभिन्न प्रदेशो के कपडे अपने आप में विशेषता लिए हुआ है | इसी के अंतर्गत इस ब्लॉग में हम मध्यप्रदेश की फेमस महेश्वरी साड़ी ( Maheshwari Saree ) की जानकारी देने का प्रयास कर रहे है |
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महेश्वरी साड़ी को पवित्र नर्मदा नदी के किनारे स्थित महेश्वर शहर में पहली बार बनाया गया इसलिए इस साड़ी का नाम महेश्वरी साड़ी पड़ा है | महेश्वरी साड़ी का इतिहास लगभग 250 वर्ष पुराना है | कहा जाता है ,रानी अहिल्या बाई होल्कर ने शिल्पकारों को नौ गज की विशेष साड़ी डिज़ाइन करने कहा जिसे उनके रिश्तेदारों और महल में आने वाले मेहमानो को उपहार में दिया जा सके इस तरह महेश्वरी साड़ी अस्तित्व में आयी |
मध्यप्रदेश के महेश्वर में स्त्रियों द्वारा विशेष रूप से पहनी जाने वाली साड़ी है | पहले ये साड़ी केवल सूती ही बनाई जाती थी लेकिन धीरे -धीरे इसमें और अधिक सुधार आया तथा ये उच्च गुणवत्ता वाली रेशमी साड़ियों में भी मिलने लगी है | परन्तु वक्त साथ इस साड़ी की डिमांड या उत्पादन में कमी आयी अतः इसको पुनर्जीवित करने के लिए रेहवा सोसायटी नामक एक गैर लाभकारी संघठन की स्थापना की गई इसके बाद इसमें कुछ सुधार आया |
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यह साड़ी अब मुख्यतः कपास और रेशम में बुनी जाती है | महेश्वरी साड़ी खासियत उसका उल्टा किनारा है ,जिसे "बुग्गी "भी कहा जाता है | सूत के लिए बुनकर केवल प्राकृतिक रंगो का ही प्रयोग करते है | इस साड़ी को डिज़ाइन के अनुसार तैयार करने में 3 से 10 दिन का समय लगता है | इसके पल्लू को बनाने में अधिक समय लगता है |
साड़ी के अलावा आज महेश्वरी कपडे से कुर्ते , शर्ट्स , दुपट्टे आदि भी तैयार किये जाते है | महेश्वरी कपडे की खासियत होती है की यह हवादार और हलके होते है , इस कारण इसे बोहत अधिक पसंद किया जाता है |