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बालूचरी साड़ी की उत्पत्ति पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद जिले में भागीरथी नदी के तट पर बलूचर नामक एक बोहत छोटे से गांव में होने के कारण इस साड़ी का नाम बालूचरी साड़ी पड़ा | बालूचरी इस साड़ी का नाम " बालू " अर्थात " रेत " तथा " चार " अर्थात "नदी का तट " से लिया गया है |
बालूचरी साड़ी का इतिहास २०० साल पुराना है , परन्तु 20 वी सदी से पहले यह हस्तशिल्प ख़तम होने के कगार पर था परन्तु ऐसा कहा जाता है की 20 वी सदी में " सुभो ठाकुर " नाम के एक प्रसिद्ध कलाकार ने बालूचरी शिल्प फिर से जीवित किया | पहले इस साड़ी की बुनाई या चित्र नवाबो के आस पास या उनकी जीवनी पर आधारित होती थी , परन्तु वर्तमान में महाकाव्य जैसे रामायण , महाभारत की कहानियो का और उसके पात्रो का वर्चस्व बोहत अधिक है |
बालूचरी साड़ी को उसके पैटर्न और धागो बनावट आधार\पर तीन भागो में विभाजित किया गया है |
1 . बालूचरी ( रेशम ) - एक ही रंग के धागो से सभी पैटर्न बुनते है |
2 . बालूचरी ( मीनाकारी ) - आकर्षक मीनाकारी के साथ दो या अधिक रंगो के धागो से पैटर्न बुनते है |
3 . बालूचरी स्वर्णचरी (सोने में बालूचरी) - यह सबसे ख़ूबसूरत बालूचरी होती है,जो सोने और चांदी के रंगो के धागो से बुनी जाती हैं |
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बालूचरी साड़ी में सबसे लोकप्रिय रंगो में लाल , हरा , सफ़ेद और नीला रंग शामिल है | साड़ी की यह सारी खूबियां ही साड़ी को एक रॉयल लुक प्रदान करती है | वैसे एक बालूचरी साड़ी बनाने लिए एक सप्ताह या उससे अधिक समय लगता है |